अम्बेडकर के विचारों में जाति प्रथा और दलित समस्याओं का समाधान
डॉ0 संदीप कुमारपी. एचडी., इतिहास विभाग, जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार
Published Date: 8 May 2025
DOI: https://doi.org/10.64127/Shodhpith.2025v1i3002
Issue: Vol. 1 ★ Issue 3 ★ May-jun 2025
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सारांश:

भारतीय सामाजिक संरचना में जाति प्रथा एक गहरे और स्थायी विभाजन का कारण रही है, जिसने दलितों को शोषण, अपमान और सामाजिक बहिष्कार का शिकार बनाया। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध एक समग्र वैचारिक और संवैधानिक संघर्ष प्रारंभ किया। उनका उद्देश्य न केवल जाति प्रथा को खत्म करना था, बल्कि दलित समुदाय को सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना भी था। डॉ. अंबेडकर का मानना था कि जाति व्यवस्था मानव समाज में असमानता, वैमनस्य और सामाजिक विघटन का मूल कारण है। उन्होंने जाति को केवल एक सामाजिक संरचना न मानकर एक गहरी मानसिकता और धार्मिक विचारधारा के रूप में देखा। अपने प्रसिद्ध निबंध ‘जाति का उन्मूलन‘ में उन्होंने वेदों, मनुस्मृति और पुरोहितवादी परंपराओं की आलोचना करते हुए कहा कि जाति व्यवस्था धर्म आधारित दमन का रूप है, जिसे समाप्त किए बिना सामाजिक समानता संभव नहीं। अंबेडकर ने दलितों को जागरूक करने हेतु शिक्षा को सबसे प्रभावशाली साधन माना। उनका नारा ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो और संघर्ष करो‘ आज भी दलित आंदोलन की प्रेरणा है। उन्हा ेंने भारतीय संविधान निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसमें समानता का अधिकार, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आरक्षण की व्यवस्था, और सामाजिक न्याय की अवधारणा को प्रमुख स्थान दिया गया। डॉ. अंबेडकर ने अनुभव किया कि हिंदू धर्म के भीतर रहकर जाति प्रथा का उन्मूलन असंभव है। अतः उन्होंने 1956 में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया, जिसे उन्होंने समानता और मानवता का धर्म बताया। उनका यह कदम दलितों के आत्म-सम्मान और पहचान के संघर्ष में मील का पत्थर साबित हुआ। आज अंबेडकर के विचार न केवल दलितों के लिए, बल्कि समूचे भारतीय समाज के लिए एक आदर्श सामाजिक समरसता, न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों का मार्गदर्शन प्रस्तुत करते हैं। जातिवाद आज भी अनेक रूपों में विद्यमान है, ऐसे में अंबेडकर की विचारधारा की समकालीन प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। उनके द्वारा सुझाए गए समाधान आज भी सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए प्रेरक प्रेरक हैं

मुख्य-शब्द:डॉ. भीमराव अंबेडकर, जाति प्रथा, दलित, सामाजिक न्याय, संविधान, शिक्षा, धर्मांतरण, आरक्षण, सामाजिक सुधार